ऐसा मुझे दिखायी पड़ता है कि परम जीवन या परमात्मा या आत्मा या सत्य को पाने के लिए दो बातें जरूरी हैं। एक बात तो जरूरी है, जो परिधि की जरूरत है। समझें, साधना की परिधि। और एक बात जरूरी है, जिसको हम कहेंगे साधना का केंद्र। साधना की परिधि और साधना का केंद्र। या साधना का शरीर और साधना की आत्मा। साधना की परिधि पर आज मैं चर्चा करूंगा; और कल साधना की आत्मा पर या साधना के केंद्र पर; और परसों साधना के परिणाम पर। ये तीन ही बातें हैं--साधना की परिधि, साधना का केंद्र और साधना का परिणाम। या यूं कह सकते हैं कि साधना की भूमिका, साधना और साधना की सिद्धि।
शरीर-शुद्धि के क्या अर्थ हैं? शरीर-शुद्धि का पहला तो अर्थ है, शरीर के भीतर, शरीर के संस्थान में, शरीर के यंत्र में कोई भी रुकावट, कोई भी ग्रंथि, कोई भी कांप्लेक्स न हो, तब शरीर शुद्ध होता है।
गुरु मिले अगम के बासी।।
उनके चरणकमल चित दीजै सतगुरु मिले अविनासी।
उनकी सीत प्रसादी लीजै छुटि जाए चौरासी।।
अमृत बूंद झरै घट भीतर साध संत जन लासी।
धरमदास बिनवे कर जोरी सार सबद मन बासी।।
वो नामरस ऐसा है भाई।।
आगे-आगे दहि चले पाछे हरियल होए।
बलिहारी वा बृच्छ की जड़ काटे फल होए।।
अति कड़वा खट्टा घना रे वाको रस है भाई।
साधत-साधत साध गए हैं अमली होए सो खाई।।
नाम रस जो जन पीए धड़ पर सीस न होई।
सूंघत के बौरा भए हो पियत के मरि जाई।।
संत जवारिस सो जन पावै जाको ज्ञान परगासा।
धरमदास पी छकित भए हैं और पीए कोई दासा।।
खरोखश तो उठे रास्ता तो चले
मैं अगर थक गया काफिला तो चले
चांद सूरज बुजुर्गों के नक्शे कदम
खैर बुझने दो इनको, हवा तो चले
हाकिमे शहर, यह भी कोई शहर है
मस्जिदें बंद हैं, मयकदा तो चले
बेलचे लाओ, खोलो जमीं की तहें
मैं कहां दफ्न हूं, कुछ पता तो चले
आदमी के जीवन की समस्या एक, समाधान भी एक। आदमी के जीवन में बहुत समस्याएं नहीं हैं और न बहुत समाधानों की जरूरत है। एक ही समस्या है कि मैं कौन हूं? और एक ही समाधान है कि इसका उत्तर मिल जाए।
हां, यह भी समझने की बात है। असल में, दुनिया में ऐसी कोई भी चीज नहीं है जिसका नकली सिक्का न हो सके दुनिया में ऐसी कोई भी चीज नहीं है जिसका फाल्स कॉइन न बनाया जा सके। सभी चीजों के नकली हिस्से भी हैं और नकली पहलू भी हैं। और अक्सर ऐसा होता है कि नकली सिक्का ज्यादा चमकदार होता है— उसे होना पड़ता है; क्योंकि चमक से ही वह चलेगा; असलीपन से तो चलता नहीं। असली सिक्का बेचमक का हो, तो भी चलता है। नकली सिक्का दावेदार भी होता है; क्योंकि असलीपन की जो कमी है, वह दावे से पूरी करनी पड़ती है। और नकली सिक्का एकदम आसान होता है, क्योंकि उसका कोई मूल्य तो होता नहीं।
तो जितनी आध्यात्मिक उपलब्धियां हैं, सबका काउंटर पार्ट भी है। ऐसी कोई आध्यात्मिक उपलब्धि नहीं है, जिसका फाल्स, झूठा काउंटर पार्ट नहीं है। अगर असली कुंडलिनी है, तो नकली कुंडलिनी भी है। नकली कुंडलिनी का क्या मतलब है? और अगर असली चक्र हैं, तो नकली चक्र भी हैं। और अगर असली योग की प्रक्रियाएं हैं, तो नकली प्रक्रियाएं भी हैं। फर्क एक ही है, और वह फर्क यह है कि सब असली आध्यात्मिक तल में घटित होता है, और सब नकली साइकिक, मनस के तल में घटित होता है।
अब जैसे, उदाहरण के लिए, एक व्यक्ति को चित्त की गहराइयों में प्रवेश मिले, तो उसे बहुत से अनुभव होने शुरू होंगे। जैसे उसे सुगंध आ सकती हैं, बहुत अनूठी, जो उसने कभी नहीं जानी, संगीत सुनाई पड़ सकता है, बहुत अलौकिक, जो उसने कभी नहीं सुना; रंग दिखाई पड़ सकते हैं, ऐसे, जैसे कि पृथ्वी पर होते ही नहीं।
लेकिन ये सब की सब बातें हिप्नोसिस से तत्काल पैदा की जा सकती हैं बिना कठिनाई के—रंग पैदा किए जा सकते हैं, ध्वनियां पैदा की जा सकती हैं, स्वाद पैदा किया जा सकता है, सुगंध पैदा की जा सकती है। और इसके लिए किसी साधना से गुजरने की जरूरत नहीं है, इसके लिए सिर्फ बेहोश होने की जरूरत है। और तब जो भी सजेस्ट किया जाए बाहर से, वह भीतर घटित हो जाएगा।